बे-रोज़गार की आत्मकथा
मेरा नाम नेहा है। मैं एक छोटे से गाँव की लड़की हूँ। बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी। मेरे माता-पिता ने बहुत मुश्किलों से मुझे पढ़ाया। उन्होंने सपना देखा था कि एक दिन मैं अफ़सर बनूँगी और अपने परिवार का नाम रोशन करूँगी। 👇👇
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मैंने शहर जाकर वकालत की पढ़ाई की, फिर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी। हर दिन सुबह से रात तक पढ़ती रही, अपने सपनों को साकार करने के लिए। लेकिन जब डिग्री मिली और परीक्षा भी पास की, तब भी नौकरी नहीं मिली।