बे-रोज़गार की आत्मकथा
मेरा नाम नेहा है। मैं एक छोटे से गाँव की लड़की हूँ। बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी। मेरे माता-पिता ने बहुत मुश्किलों से मुझे पढ़ाया। उन्होंने सपना देखा था कि एक दिन मैं अफ़सर बनूँगी और अपने परिवार का नाम रोशन करूँगी। 👇👇
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मैंने शहर जाकर वकालत की पढ़ाई की, फिर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी। हर दिन सुबह से रात तक पढ़ती रही, अपने सपनों को साकार करने के लिए। लेकिन जब डिग्री मिली और परीक्षा भी पास की, तब भी नौकरी नहीं मिली।
हर जगह अनुभव माँगा जाता था, लेकिन नौकरी ही नहीं तो अनुभव कहाँ से लाऊँ? कई बार इंटरव्यू में सिर्फ़ इसलिए रिजेक्ट कर दी गई क्योंकि मैं एक लड़की हूँ।
कुछ लोगों ने कहा –
“शादी कर लो, इतनी पढ़ाई का
क्या फ़ायदा?”
घर की हालत खराब होने लगी। मैंने सिलाई-कढ़ाई का छोटा सा
काम शुरू किया,
ताकि माँ-बाबूजी की मदद कर सकूँ। कभी-कभी रात को चुपके से
रो लेती हूँ,
लेकिन सुबह फिर से हिम्मत जुटाती हूँ।
मैं जानती हूँ, ये सफर आसान नहीं
है। लेकिन मैं हार नहीं मानूँगी। मेरा सपना सिर्फ़ मेरी नहीं, हर उस लड़की का है जो अपने पंख फैलाना चाहती है, लेकिन समाज की दीवारें उसे रोकती हैं।
एक दिन मैं ज़रूर उड़ान भरूँगी और दुनिया को दिखाऊँगी कि एक बे-रोज़गार लड़की भी अपनी मेहनत से इतिहास लिख सकती है।
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