पाठ्यपुस्तक की आत्मकथा
मैं एक पुस्तक हूँ | नर्सरी से ले कर कॉलेज तक सबकी सफलता की कुंजी हूँ . मै छात्रों को आगे बढ़ने में मदद करती हूँ. मैं सबकी सच्ची मित्र हूँ. मैं सबको अच्छा मार्ग दिखाती हूँ. परीक्षा में पास होने का साधन हूँ . मै सबके
ऊपर ज्ञान की बरसात करती हूँ . मेरे रूप अनेक
हैं . मुझे अलग अलग नाम से बुलाते है जैसे बुक, किताब, नावेल, पुस्तक इत्यादि.
मुझे बहुत ख़ुशी भी होती है जब
कोई मझे पढता है. जो मेरा आदर करते हैं, मैं भी उनका सम्मान करती हूँ. मेरे सदुपयोग से ही निरक्षर व्यक्ति भी विद्वान बन जाता है और मुर्ख समझदार बन
जाता है | जो व्यक्ति मेरा सम्मान करना नहीं जनता वह जीवन भर
अपने भाग्य को कोसता है . दर - दर की ठोकरें खाना उसके भाग्य में लिखा होता है . यह तो मेरा काम ही है की मैं आपको ज्ञान दूँ.
मुझे आशा है की आप मेरी बातो को
समझ गए होगे की मैं क्या कहना चाहती हूँ. मैं ने जो आपसे कहा है यह बाते दुसरो
तक पहुंचा दो, फिर वे भी मेरा आदर करेगे.
फिर वे भी कहेगे .............
“बुक इज, माय बेस्ट फ्रेंड”
No comments:
Post a Comment
आपको यह पोस्ट कैसी लगी कमेन्ट जरूर करें।